वैकुंठ पंढरी भिंवरेचे तीरीं । प्रत्यक्ष श्रीहरी उभा तेथें | Vaikunth Pandhari Bhivareche Tiri | Pratyaksh Ubha Tethe
वैकुंठ पंढरी भिंवरेचे तीरीं । प्रत्यक्ष श्रीहरी उभा तेथें ॥१॥
रूप हें सांवळें गोड तें गोजिरें । धाणि न पुरे पाहतां जया ॥२॥
कांसे सोनसळा नेसला पिंवळा । वैजयंती माळा गळां शोभे ॥३॥
चोखा म्हणे ऐसें सगुण हें ध्यान । विटे समचरण ठेवियेले ॥४॥
Vaikunth Pandhari Bhivareche Tiri | Pratyaksh Ubha Tethe ॥१॥ Rup he Saavale God te Gojire | Dhani Paahata Jayaa ॥2॥ Kaase Sonsala Nesalaa Pivala | Vaijayanti Mala Gala Shobhe ॥3॥ Chokha Mhane Aise Sagun He Dhyan | Vite Samacharan Thevile ॥4॥
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